Ajanta Caves - अजंता की गुफाओं के रहस्य: प्राचीन भारतीय कला और वास्तुकला की उत्कृष्ट कृति

अजंता की गुफाये ( Ajanta Caves )जो शिलाखंडों कों तराश कर, एक विशालकाय घाटी के मार्ग में, सुंदर मनोरम अजंता गुफाओं को एक विशाल घोड़े की नाल के आकार में तैयार किया गया है, ये गुफायं आरंभिक बौद्ध वास्तुकला, गुफा चित्रकारी एवम् शिल्पकला के कुछ उत्कृष्ट उदाहरण में से एक है। इन गुफाओं में बुद्ध को समर्पित किया चैत्य-कक्ष, विहार स्थित है, जहा बौद्ध गुफा वासी ध्यान तथा बौद्ध उपदेशों का अध्ययन किया करते थे|

इन गुफाओं की दीवारों एवंम् भीतरी छतों पर, बुद्ध के जीवन कीकुछ महत्वपूर्ण घटनाओं एवं, बौद्ध धर्म के दिव्य चित्रों को तराशा गया है। अन्य सुंदर चित्रकारी में जातक कथाओं , बोधिसत्व के पूर्व जन्म की विविध कथाओं का चित्रांकन किया गया है, जो कि बुद्ध बनने की दीक्षा लेकर आए थे|

१३०० वर्षों तक व्यस्त रहने के बाद, अचानक अजंता की गुफाओं ( Ajanta Caves ) को जैसे भुला दिया गया हो | मानों जैसे काल के अंधकार में छिपी रही, लेकिन १८१९ में ब्रिटीश सेना अधिकारी मद्रास रेजिमेंट से जॉन स्मिथ जब बाघ के शिकार पर निकले तो अचानक वह इन गुफाओं तक पहूच गये। स्मिथ ने वाघोरा नदी के ऊपर गुफा का मुँह देखा और फीके चित्रों वाला एक हॉल खोजने के लिए गुफा के अंदर प्रवेश किया, प्रेषण स्थल जहाँ से खडे होकर जॉन स्मिथ ने पहली बार इन गुफाओं को देखा, वहा सें खुबसूरत प्राकृतिक दृश्य के साथ यह घाटी मार्ग है, जो घोडे की नाल के आकार का दृश्य प्रस्तुत करता है|

अजंता की गुफाये बाढ़ बेसाल्ट और ग्रेनाइट चट्टान प्रकार के पत्थरो पर बनायी गयी है |१९८३ में इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल से नामित किया गया। ये गुफाये ५६ मीटर उचाई पर हे और उसका पूरा एरिया ५५० मीटर नाली के आकार की गुफाये अजंता के पहाडी चट्टानों पर फैली हुई है, उसकी एक ऐसी खास जगह है यहॉ गुफा नंबर ८ सबसे नीचे मिलती तोह गुफा नंबर २९ पहाड की चोटी पर स्तिथ है|

ajanta caves

कब और कैसे बनी ( Ajanta Caves) ?

यहाँ कुल मिलाकर २६ गुफाये (Caves ) देखने को मिलती है, जिनमे से गुफा नंबर ६, १०, १६, २६ और २९ चैत्य पूजासथल रूप में है और बाकी विहार तथा आश्रम के लिए मशहूर है|

अजंता की गुफाओं के लिए करीब करीब चौथी शताब्दी तक उत्खनन का अथक परिश्रम करने के बाद सफलता हाथ लगी। ये खुदाई का काम राजा वाकाटक के शासन में हुआ था| ५ वी शताब्दी के आखरी ५० सालों में और छटे शताब्दी पहले ५० सालों का काल कुल मिलाके इन शताब्दियों के दौरान के साल ही शिल्पकला और चित्रकला के लिए सुवर्णयुग माने जाते थे। ७ वि शताब्दी के बाद इन गुफाओं की खुदाईं का काम धीमा होता गया। जो गुफायें अधूरी रह गयी, उनमे से कुछ अधुरी होकर भी देखने लायक बनी हुई है। इन गुफाओं की सबसे बडी विशेषता ये है कि, यहा की गुफाओं को तराशते समय छत से शुरुवात कर नीचे तक गुफा की शिल्पकला की रचना करते आये हैं। इन गुफाओं को बनाने के औजार याने टिकाव, कुदल बाद में कलाकुसर के काम में छेनी और हाथोड़े का इस्तेमाल हुआ । जगह-जगह पर खंम्भों का आधार दिया हुआ है और छोटे बड़े हॉल निकाले हुए हैं। गुफा बनाते समय चट्टानों की सफाई और उसमें बनाये शिल्पो को रंग देने का काम एक साथ किया हुआ नजर आता है और भी पहले गुफा के सामने का दर्शनीय भाग बनवाकर अंदर का काम किया गया है। इससे यह पता चलता है कि, कलाकारों का हेतू पहले ड्राइंग हॉल की सुंदर रचना करने के बाद अंदरूनी स्थलों की रचना करने का था। इन सबको देखने क बाद उन कलाकारों की मेहनत, अपने काम के प्रति उनकी लगन और अनके हाथों की कला जगह-जगह पर देखने मिलती है, जिसकी वजह से आज भी अजंता की गुफाये विश्वभर में प्रसिद्ध है|

अजंता की गुफाये आज भी शिल्पकला का एक बेजोड़ नमूना है| और अभ्यास के लिए उपयुक्त है। खुदाई नक्काशी की ओर से देखा जाये तों विश्वभर में मानी गयी इन रचनाओं का महत्व अजो.ड़ है| ये गुफाये ५ से ७ वीं शताब्दी तक तराशी गयी है, जो की आज एक अति उच्च कला का प्रतिक है| यहाँ आनेवाले हर एक प्रेक्षक यहा की कला देखकर इसकी अध्यात्मता, प्रसन्नता और सुंदरता से आनन्दित होता है| सारनाथ में स्थित समकालीन बुद्व मूर्ति की वजह से यहा की मूर्तिकला का महत्व अधिक उजागर होता है, क्योंकि ऐसी अनेक मुर्तिया की यहा पर खुदाई की गयी है|

यहां की गुफाओं की रचनाओं का काम दो अलग-अलग काल में किया गया है| पहले काल के सालों में मूर्तियों और कलावस्तू को रंग देने का कार्य सैंपल के तौर पर किया गया था, ये गुफा नंबर ६ और १० देखने के बाद अनुमान लगा सकते हे। ये काम शायद पहली और दूसरी शताब्दी के दौरान पूरा हुआ लगता है। इन बनी हुई मूर्तियों के कपड़ों का पहनाव,उनके चेहरे और अलंकार देखने लायक है। इनको देखकर हम ये अनुमान लगा सकते हैं कि, इन्हें बनाने में कलाकारों ने कितना कष्ट उठाया है| इसी कारण ये कला आज भी हमारे देश में और ज्यादा प्रचलित हो रही है|

अजंता गुफाओं Ajanta Caves की वास्तुकला की चमक

चित्रकला के दूसरे कार्य काल में याने चौथी और पांचवी शताब्दी में ये कार्य आगे दो शताब्दी तक शुरू रहा| इसका आरंभ का काल वाकाटक राजाओं का काल था| इसी काल में चित्रकला का काम और तेजी से हुआ । गुफा नंबर १, २, १६ और १७ की चित्रकला बेजोड़ है और कलाकारों के हाथों का कमाल यही दिखाई देता है। इन गुफाओं में बनी चित्रकारी एकदम उँचे दर्जे की है और यहाँ आनेवाला हरएक प्रेक्षक यहाँ की सौंदर्यता, कलाकारी, रंग और रचना देखकर दंग रह जाता है |


यहाँ की दीवारों पर प्रस्तुत किये गए विषयों को देखा जाये, तो वह बुद्ध और बोधीसत्व के इर्दगिर्द होकर उनके धम्म का अंश भी दिखाई देता है। उनमे अंकित बुद्ध के जीवन पर आधारित कथा और जातक कथा और इनमे दिखाई देने वाली छटा, प्रचारकों ने दिखाया मार्ग आनेवाले विद्यार्थियों को मार्गदर्शन करने वाला है| उनमें मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक, स्त्री पुरुषो के पूर्व जीवन पर आधारित और राजा से लेकर गुलाम तक, अमीर से लेकर गरीब तक, संतो से लेकर दुष्ट लोगो तक दयालू से लेकर निर्दयी लोगों तक, प्रेम व घृणा आनंद और दुख, जय-पराजय और अनेक अलग-अलग छटाओं का चित्रण दिखाई देता है। पर धम्म पर आधारीत ये दृश्य घराणेशाही कोर्ट, शहरों, कसबों, बडे घर तथा आश्रम इन सबका आईना ही है| इनमें से हमें उस काल के रहन-सहन, पेहराव, अलंकार, संगीत के अलग-अलग प्रकार, बर्तन, युद्ध में उपयुक्त अस्त्रशस्त्र इन सबको तलाशने में काफी मदद मिली है| उन्होंने मनुष्य के अलग-अलग जाती-धर्म का चित्रण ऐसा प्रसतुत किया है कि,उन लोगो को भी देवी-देवताओं जैसे यक्ष , किन्नर , गन्धर्व और अप्सरा इत्यादि पर विश्वास था और इसीलिए उन्होंने सबको प्रस्तुत किया | वास्तुशास्त्र के दृष्टी से अपूर्व ऐसे अलग-अलग श्रेणिओं के विहार, रजवाड़े और तंबू उसी के साथ बड़े-बड़े दरवाजे और किले के रक्षण के लिए बनायी गयी दीवारे, स्तूप भी तेयार करके रखे हैं|

छत पर बनी हुई पेंटींग में अलग-अलग छटाये बारीकी से दिखाई है| जैसे कीं फुल, पेड, फल, पक्षी, जानवर, मनुष्य ये देखकर उनकी इन सब विषयो में कितनि पकड़ थी ये दिखाई देता है|

पेंटिंग के बारे मे कहा जाये तो, ऐसा प्रतीत होता है कि पहले धातुमिश्रित मिट्टी लेकर उसमें चट्टानों में मिलने वाले पत्थरो के बारीक टुकड़े, वनस्पतियों के तंतू , चावल का भूसा, रेत इन सबका मिश्रण वे पेंटिंग के पहले दीवार पर लगाते आखरी में वह नीबू पानी सें धोकर दीवार पेंटिंग के लिए तयार होती थी | रंग लगाने के उपाय भी सादे थे| पेंटिंग के पहले आऊट लाईन निकाल कर अलग-अलग कलर लगाया जाता था |

यहाँ के कलर-काम्बीनेशन एक जेसी नही, जहाँ जरूरी है वहॉँ आवश्यकता अनुसार ही रगों का प्रयोंग किया गया है।| इसीलिए यहाँ की चित्रशैली अजंता चित्रशैली के नाम से विश्वभर में प्रख्यात हुई हे और अपनी अलग पहचान बनायी हुई है|

 

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अजंता की मनमोहक चित्रकारी

गुफा नंबर १ यह बीस स्तम्भों पर बना हुआ बड़ा हॉल है| स्तम्भों पर बहुत सुन्दर डिजाईंन तराशे हुए हैं। चित्र जातक कथाये दर्शांती है, जो कि महात्मा बुद्ध के पिछले जन्मों पर आधारित है| पूजा स्थल में बुद्ध की एक विशाल मूर्ती हे जिसके चेहरे पर जब दाहिनी और से रौशनी डाली जाती है तब इस मूर्तिके चेहरे पर गंभीर भाव व्यक्त होता है| तथा बायीं ओर सामने से रोशनी डालने से तपस्या और शाती के भाव प्रदर्शित होते हैं|

बाहरी दीवार पर मारा का चित्र है, जो प्यार का देवता है और बुद्ध को रोक रहा है कि वह तपस्या न करें| दूसरे एक चित्र में बुद्ध की कई मुद्रायें दर्शायी गयी है| असेम्बली हाल जो बायी ओर है, शिबी जातक कथा दर्शाता है, इसमें राजा शिबी कबूतर को बाज के चंगुल से बचाता नजर आता है|

नागराज या कहे सर्प राजा एक महिला साथ जो रथ पर बैठी हुई है, वह भी उस जगह का दृश्य है| पूजा स्थल के निकट एक दीवार पर विश्व प्रसिद्ध पद्मपानी की मुद्रा दर्शाती है| महात्मा बुद्ध का यह प्रसिद्ध चित्र इटालियन समकालीन युग की तस्वीर का मुकाबला करता है|

जहाँ तक पोट्रेट आर्ट का संबध है, यह संसार की बहुत बढिया पोट्रैटस में से एक है | महात्मा बुद्ध के हाथ में कमल शान्ति ओर पवित्रता की निशानी हे| पद्मपानी के समीप एक नारी आकृति है, जिसके शरीर पर केवल आभूषण ही है|


एक दरबार का दृश्य दिया गया है, जिसमें विदेशी महत्वशाली लोग भारतीय राजाओं को तोहफे पेश कर रहे हैं। बुद्ध की माता मायावती का स्नान करते हुए का चित्र भी है| अखाडे पर लड़तें हुए कुछ जानवरों की तस्वीर है छत पर कई पक्षियों, फुलों और फलों की पेंटिंग्स है, ये डिजाईन आजकल की शालों और साडियों पर नकल किए जाते है| कुछ और दृश्य दिखाये गये है, एक ऐसी ही अद्भुत सांड की पेंटिंग है जो किसी कोने से भी अगर देखे तो लगता है, देखने वाले पर आक्रमण कर देगा|

गुफा नंबर २ गुफा के बायीं ओर हंस के जन्म की कथा दर्शायी गयीं है| बुद्ध की माता अपना सपना राजा को सुना रही है। बुद्ध के माता-पिता उसे प्यार करते हुए चित्रित है | बायीं ओर कमरे में बुद्ध की एक आकृति है, जिसकी छत पर हंसो का एक समूह दिखाया गया हैं अन्य चित्रों में आज के युंग की कई चीजें नजर आती है, जैसे मफलर, पर्स और स्लीपर| पुजा स्थल के सामने अखाड़ा है, जिसमें बुद्ध की कई आकृतियाँ है। छत पर इतनी सुन्दर नक्षी काम और चित्रण है कि यह डिजाईन आज यहाँ की हिमरू साडियों और शालों पर अंकित हो रहे हैं। असेम्बली हॉल में कई स्तम्भ है |

गुफा नंबर ३ अपूर्ण गुफा है|

धार्मिक महत्व

गुफा नंबर ४ यह सबसे विशाल गुफा है, जिसमें २८ स्तम्भ है। द्वार पर सामान्य द्वारपाल दिखाये गये हैं।भीतर पूजा स्थल में महात्मा बुद्ध की ६ खड़ी मूर्तियाँ, जो कि अष्टभय से बचाती दिखाई गयी हे |

गुफा नंबर ५ यह अधुरी है और इसमे कुछ बुद्ध की आकृतियां है|

गुफा नंबर ६ इस गुफा की दो मंजिल है| सभा कक्ष में बुद्ध की पद्मआसन्न मुद्रा में आकृति है| दूसरी मंजिल में सभा कक्ष स्तम्भों वाला है। प्रवेश द्वार पर मगरमछ और फूलों की अदाकारी बनी है |

गुफा नंबर ७ यह गुफा अलग है, इसमें केवल दो छोटे मंडप है, पर कोई कक्ष नहीं है|

गुफा नंबर ८ इस गुफा में कुछ नहीं हे |

गुफा नंबर ९ यह गुफा आयताकार क्षेत्र के बीच में एक ही शिलाखंड से अर्धगोलाकार स्तूप के रूप में निर्माण की ग़यी है। इस गुफा की उपरी छत पर चित्रकारी की झलक दिखाई देती है, जिनके उपर बुद्ध के विविध मुद्राओ में चित्र तराशे गये हैं|

गुफा नंबर १० यह एक हिनयान मंदिर है, जिसमें लगभग ४० स्तम्भ है, जो बड़ी खुबसूरती से तराशे हुए है| इसमें एक स्तूप भी है जिसपर पाली भाषा की ब्रम्हा लिपी में आलेख अंकित है| जिससे प्रकट होता है कि, यह गुफा ईसा पूर्व दो शताब्दी की है। यह आलेख बताता है कि, बांस और ईमारती लकडी बेचने वाले व्यापारी ने इस गुफा का मुख बनवाया था| यह हिनयान पर्याय गुफा है|

गुफा नंबर ११ का सभा कक्ष बहुत बड़ा है| और भीतर पूजा स्थल में भगवान बुद्ध की आकृति है|

गुफा नंबर १२ ये हिनयान पर्यायी विहार है, यहँ पत्थरों के पलंग की योजना है|

गुफा नंबर १३ और १४ पुरातत्व का स्टोर रूम है|

गुफा नंबर १५ यहॉँ विहार गृह में मुख्य मंडप हे, सभा मंडप और भगवान बुद्ध की मूर्ति है|

गुफा नंबर १६ इस गुफा में बहुत ही महत्पूणं चित्र है। यहाँ बुद्ध के जीवन की घटनायें दर्शायी गयी है| बाई ओर के दृश्य में बुद्ध के भाई नन्द दिखाये गए हैं, जो संसारिक खुशियां छोडकर भिक्कु बने हुए है|

एक दृश्य नन्द की माता महाप्रजापति को दर्शाया है, वे बेहोश पड़ी है। और एक नर्स उनकी देख-रेख कर रही है|

कथकली के नृत्य का चित्र भी प्रशंसनीय है| भीतरी पूजा स्थल में बुद्ध की विशाल आकृति है| यहां हाथी, घोड़ा और मगरमच्छ के चित्र देखने योग्य हे | छत का चित्रण भी बहुत सुन्दर और आकर्षक है|

एक चित्र बुद्ध की माता का है, जिसमें वह अपने पति को सपना सुना रही हे और ज्योतिषी इस सपने के मायने बता रहा है। इस चित्र का थ्रीडी प्रभाव हे | बुद्ध के बाल अवस्था के प्रसंग, चित्र जैसे सजीव है। जैसे लकड़ी का काम पथरो में किया गया है |

गुफा नंबर १७ यहाँ बुद्ध के जीवन की कई घटनायें और जातक कथाऐ बताई गयी है। सभा कक्ष बहुत सुन्दर है और पूजा स्थल में बुद्ध की आकृति है| बाई और बुद्ध के पिछले जन्म का दृश्य है, कहानी एक हाथी की. जो बुद्धत्व को प्राप्त हो गया था | एक रोज़ उसे पता चला कि लोग भूखे हैं| तो उसने लोगों से कहा कि वो चट्टान के नीचे जाए| वहां खाना मिलेगा| जैसे ही लोग नीचे गए| हाथी खुद चट्टान से कूद गया| ताकि उसकी मृत्य हो जाए| और भूखे लोग उसके शरीर को खाकर अपना पेट भर सकें| बुद्ध को एक दयालू राजकुमार के रूप में दिखाया गया हे और एक भादुक दृश्य है कि वो अपने परिवार से तब मिल रहे हैं, जब वो सांसारिक वस्तुए छोड चुक है|

वो अपनी पत्नी राजकुमारी यशोधरा और पुत्र राहुल से भीख माँगते हुए दिखाये गये हैं| दूसरे चित्र में बुद्ध एक विशाल शरीर धारण किये हुए हैं| राजा और उनके मंत्री अपने हाथों में बुद्ध के सामने दीपक लिये खड़े हैं| जिसका भाव अर्थ यह है कि, वह संसार को बुद्ध के विचारों से प्रकाशमान करंगे|

यहाँ की छत इतनी खुबसुरत बनाई और चित्रित की गयी है कि लगता है कि यह कपड़ा है, जिसके सभी ओर किनारा है | छत में परियों की कथाये चित्रित है| बरामदे में भी चित्र है| जो जीवन की अनेकता को दर्शाता है फिर एक चित्र हाथी का भी है जिसे देवदत्त ने बुद्ध को मारने के लिए लाया था | लेकिन बुद्ध ने उस सनकी हाथी को भी वश में कर लिया| एक बहुत ही सुन्दर चित्र अप्सरा का भी है| d

गुफा नंबर १८ यह आयताकार खोदी हुई गुफा है| जों दूसरे कक्ष की और जाती है। इसमें पानी की टंकी है|

गुफा नंबर १९ यह एक घोड़े की नाल के आकार का विहार है और यहाँ बुद्ध की आकृतियाँ है| बाईं ओर नाग राजा अपनी पत्नी समेत दर्शाये गए हैं| ओर दाई तरफ बुद्ध अपनी पत्नी और पुत्र से भिक्षा लेते नजर आते ह|। यहाँ तीन छतरियों वाला एक स्तूप है और बुद्ध की आकृति स्तूप पर तराशी हुई है|


गुफा नंबर २० पूजा स्थली में बुद्ध प्रचार करते हुए दिखाये गए है। स्तंमों पर विविध डिजाइन्स हैं| छत पर लकड़ी की प्रतीकृती है |

गुफा नंबर २१ हालाकि यह मठ आंशिक रूप से ही पूर्ण है, परन्तु इसमें कई सुंदरता से अलंकृत स्तंभ हे , बायी दीवार पर एक भव्य चित्रकारी के अवशेष दिखाई पडते है, जिसमे भगवान बुद्ध धार्मिक समुदाय को उपदेश देते दिखाई दे रहे है बरामदे के किनारो पर मौजूद वेदी पर खुशहाली की देवी हारिति को नक्काशी द्वारा साकार किया गया हे, जिसकी दायीं तरफ उसके सेवक और बायीं तरफ नागराज का दरबार चित्रांकित किया गया है |

गुफा नंबर २२ यह गुफा अधूरी है | फिर भी इसके दायीं दीवार पर बहुत ही सुन्दर पेंटिंग है जिसमे बोधि पेड़ के निचे संघ खड़े दिखाए गए हे |

गुफा नंबर २३ यह भी अधूरी रह गयीं थी|

गुफा नंबर २४ यह सब गुफाओ से खूबसूरत होती अगर गुफा अधूरी न होती क्षेत्रफल में यह सबसे बड़ी है | इसकी भव्यता और कलात्मक्ता बहुत सुन्दर और प्रशंसनीय है |

गुफा नंबर २५ यह एक अधुरा विहार है| जिसमें कोई पूजा स्थल नही है, ना ही कोई कक्ष, यह केवल आंगन है |

गुफा नंबर २६ इस गुफा के चैत्य कक्ष के भीतरी भाग बारीकी से नक्काशी की गयी बुद्ध आकृतियाँ शोभायमान है| मुख्य स्तूप में मंडप में बेठी हुई मुद्रा में बुद्ध की विशाल प्रतिमा है| बायीं दीवार पर दो कथाओं का चित्रण है| पहले चित्र में काम देवता मारा का प्रलोभन तथा बुद्ध की विशाल मूर्ति लेटी हुईं मुद्रा में तराशी गयी है। यह बुद्ध के जनम-मरण के चक्र से मोक्ष अर्थांत महापरिनिर्वाण को व्यक्त करती है। इसके नीचे बुद्ध के शिष्य अपने गुरू के देहावसान के कारण शोक से व्याकुल दिखाईं पड़ रहे हैं, जबकि देवलोक में बुद्ध के मोक्ष से हर्ष और आनंद छाया हुआ है |

गुफा नंबर २७ यह गुफा बुद्ध के जीवन पर आधारित दो चित्र है, जो गुफा के बाई और है| पहले चित्र में बुद्ध का चित्रण है जो महापरिनिर्वाण की मुद्रा मे दिखाई देते है| दूसर चित्र में मारा दिखाई देते हैं, उसमें बुद्ध एक पेड के नीचे बैठे दिखाई देते है| मारा अपनी दृष्ट शक्तियों के साथ वहा पहुँचता हैं, | उसकी पुत्री बुद्ध को अपने मायावीं जाल में फसाकर अपनी ओर आकर्षित करना चाहती है और निराश हुआ मारा, ये दृश्य दिखाई देता है|

गुफा नंबर २८ और २९ यह दो गुफायें चट्टान की ऊँचाइयों पर है। और इसमें देखने लायक बहुत कम है। जैसे २८ नंबर में आँगन और स्तम्भ और २९ में केवल खुदाई हुई है किन्तु चढ़ने के लिए सीढिया नहीं है |

गुफा नंबर २९ यह गुफा ईस्वी सन १९५६ में उपलब हुई जो कि गुफा नंबर १५ और १६ के बीच में है यहाँ छोटा सा विहार है|

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